नेपाल में 20 सितंबर को नया संविधान लागू होने के बाद भारत से उसके रिश्ते तनावपूर्ण हो गए हैं. ऐसे में, सवाल उठ रहे हैं क्या नेपाल पर चीन का असर बढ़ेगा. नेपाल को भारत का सबसे करीबी देश माना जाता रहा है, लेकिन जबसे नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना हुई है, तब से वहां भारत के प्रति अविश्वास की भावना प्रबल होती चली गई. इस मौके का फायदा चीन ने बखूबी उठाया और वहां अपनी जड़ें मजबूत करने का हर संभव प्रयास किया. वह अपनी कोशिशों में काफी हद तक सफल भी रहा. हालांकि भारत ने नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना का समर्थन किया था, लेकिन उसका यह निर्णय उसके लिए परेशानी का सबब बन गया है. वाम दलों के वहां की सत्ता में आने के बाद माओवादियों का झुकाव चीन की तरफ ज्यादा हो गया. भारत ने इसे साधने की हर संभव कोशिश की लेकिन परिस्थितियां भारत के विपरीत ही होती चली गईं. संविधान के विरोध में मधेसियों के आंदोलन की वजह से भारत से नेपाल होने वाले सामान की आवाजाही पर रोक लग गई है. इससे वहां की जनता परेशान हो गई है. इसके बाद वहां की स्थानीय मीडिया में खबरें आ रही हैं कि चीन नेपाल की आपात मदद करने की तैयारी में है. नेपाल में एक समुदाय भारत का विरोधी है और दूसरा चीन का.
नए संविधान लागू होने के बाद भारतीय मूल के मधेशी नेपाल में दूसरे दर्जे के नागरिक बन गए हैं. हालांकि मधेशी अपने अधिकारों को लेकर संविधान के लागू होने से पहले ही आंदोलन कर रहे थे. उनका मानना है कि नए संविधान में मधेशियों के अधिकारों को नज़र अंदाज किया गया. भारत सरकार ने भी मधेशियों की मांग को जायज ठहराते हुए नेपाल सरकार के सामने अपना विरोध दर्ज कराया. मधेसियों के मुद्दे को सुलझाने के लिए संविधान के लागू होने के ठीक एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने विशेष दूत के रूप में विदेश सचिव जयशंकर को काठमांडू भेजा. नेपाल पहुंचे जयशंकर ने नेपाल के नेताओं से मिलकर कहा कि जब तक मधेसियों की समस्या का समाधान नहीं हो जाता, तब तक उन्हें संविधान के लागू होने की घोषणा नहीं करनी चाहिए, लेकिन संविधान सभा ने भारत के अनुरोध को नकारते हुए एक प्रस्ताव पारित किया और संविधान को लागू कर दिया.
इसके बाद तराई इलाके में संविधान को लेकर विरोध प्रदर्शन उग्र हो गए, जिसमें अब तक 40 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. ऐसे में भारत-नेपाल सीमा से किसी भी तरह के सामान की आवाजाही पर रोक लग गई. भारत से किसी भी तरह का सामान नेपाल नहीं जा पा रहा है. नेपाल पेट्रोलियम पदार्थों से लेकर अनाज व अन्य उत्पादों के लिए भारत पर निर्भर है, ऐसे में वहां त्यौहारों के समय आवश्यक पेट्रोल और रसोई गैस सहित कई उत्पादों की कमी हो गई, जिसका सीधा असर पूरे देश के लोगों के रोजमर्रा के कामों में पड़ने लगा है. समस्या को बढ़ता देख नेपाल के नए उप-प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री कमल थापा भारत के दौरे पर आए. इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाक़ात की. नई दिल्ली आए थापा ने अपने देश के वर्तमान राजनीतिक हालात के बारे में सुषमा को बताया और वहां चल रहे गतिरोध का जल्दी ही हल निकालने की आशा जताई. उन्होंन बताया कि नेपाल सरकार तराई में सक्रिय मधेसी संगठनों से चर्चा को राजी हो गई है. यही नहीं सरकार ने मधेसी नेताओं को बातचीत के लिए आमंत्रित भी किया है. और बातचीत में भारत से मदद भी मांगी, जिस पर भारत ने कहा कि हर संभव मदद के लिए तैयार है. भारत ने कहा कि नेपाल तराई क्षेत्र सहित देश की मौजूदा चुनौतियों से जितनी जल्दी संभव हो जिम्मेदारी-पूर्वक निपटे. थापा ने भारत की ओर से होने वाली आपूर्ति, विशेष रूप से पेट्रोलियम उत्पादों में अवरोध पर चिंता जताई, जिसपर सुषमा स्वराज ने उनसे कहा कि कमी या बंदी नेपाली पक्ष के असंतुष्ट तबके द्वारा पैदा किए गए अवरोधों के कारण है. लेकिन सोशल मीडिया में इसे नेपाल सरकार पर दबाव बनाने के लिए अघोषित आर्थिक प्रतिबंध बताया जा रहा है. इस वजह से नेपाल में भारत विरोधी स्वर प्रबल होते जा रहे हैं. इसके पीछे भी चीन का हाथ होने की संभावना जताई जा रही है. भारत सरकार ने भी भारत विरोधी भावनायें भड़काने वालों पर लगाम लगाने का अनुरोध कमल थापा से किया है.
भले ही नेपाल भारत का कई दशकों से सहयोगी रहा है, लेकिन भारत को यह समझना होगा कि यह समस्या नेपाल की जनता की है, इसका समाधान भी उन्हें और वहां की सरकार को करना है. ऐसे में भारत को उनके आंतरिक मामले में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए. भारत नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना का समर्थक रहा है. भारत की कोशिशों से ही नेपाल की राजनीतिक पार्टियां और माओवादी एक साथ आकर लोकतांत्रिक संविधान बनाने के लिए तैयार हुए थे. भारत नेपाल के साथ सिर्फ सीमा ही नहीं, संस्कृति भी साझा करता है. भारत की चिंता खास कर मधेसियों और जनजातीय लोगों के अधिकारों के हनन को लेकर है. मधेसी भारतीय मूल के हैं और वे भारत की सीमा से लगे इलाकों में रहते हैं. बिहार के सीमावर्ती इलाकों से मधेसियों के घनिष्ठ संबंध हैं. दोनों क्षेत्रों के लोगों के बीच वैवाहिक संबंध भी होते हैं. ऐसे में यदि दक्षिणी नेपाल में हिंसा का दौर शुरू होगा, तो इसका उत्तर भारत पर भी व्यापक असर हो सकता है. जिसका अप्रत्यक्ष रूप से फायदा चीन को होगा.
नाकेबंदी की खबरों की इतना ज्यादा असर हुआ कि भारत सरकार को यह बयान देना पड़ा कि किसी प्रकार की आर्थिक नाकेबंदी नहीं की गयी है, महज सुरक्षा कारणों से कुछ वाहनों को रोक दिया गया था. कुल मिला कर मौजूदा दौर में भारत को अपनी ओर से कोई भी कदम बहुत सोच-समझ कर उठाना होगा, न कि उत्तेजना में. दरअसल, भारत सरकार बिहार विधानसभा चुनावों तक नेपाल में संविधान की घोषणा नहीं होने देना चाहती थी, क्योंकि यदि बिहार में भाजपा जीत कर आयेगी, तो उसे मधेस को सामने रख कर कई प्रावधानों को संविधान में शामिल करवाने में आसानी हो सकती थी. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया.
मधेसियों के अलावा महिला समूह इस बात को लेकर संविधान का विरोध कर रहे हैं क्योंकि संविधान में यह प्रावधान है कि यदि कोई नेपाली महिला किसी दूसरे देश के नागरिक के साथ विवाह करती है तो उसकी संतान को नेपाल की नागरिकता तब तक नहीं मिलेगी जब तक उसका पति नेपाली नागरिक नहीं बन जाता है. वहीं दूसरी तरफ यदि बच्चों का पिता नेपाली है तो मां के नेपाली नागरिक होते बगैर ही उनके बच्चों को नेपाल की नागरिकता मिल जाएगी. पूर्व के तराई इलाके में रहने वाले मधेसी समुदाय के लोगों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ा है. ये समुदाय जातीय और सांस्कृतिक रूप से एक दूसरे से जुड़े हैं. सीमा के दोनों ओर रहने वाले लोग एक दूसरे के यहां विवाह करते हैं, पीढ़ियों से दोनों तरफ के लोगों के बीच पारिवारिक संबंध हैं. इनका आरोप है कि इनके साथ हमेशा से भेदभाव होता रहा है और इन्हें स्वाकार्यता नहीं मिली है. नागरिकता के इस प्रावधान की वजह से उनके लिए समस्याएं खड़ी हो जायेंगी. इस प्रावधान का असर उनके सामाजिक संबंधों पर पड़ेगा.
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जब तक भारत इस बात पर पुनर्विचार नहीं करेगा कि उसे नेपाल के अंदरूनी मसलों में कहां तक हस्तक्षेप करना है, तब तक यह समस्या बनी रहेगी. भारत की ओर से अनौपचारिक नाकेबंदी से नेपाल के पहाड़ी और मधेसी दोनों मुश्किल में हैं. भारत-नेपाल सीमा पर अघोषित आर्थिक नाकेबंदी के चलते नेपाल में ईधन संकट गहरा गया है. नेपाल जिस तरह के संकट में अभी फंसा है उसके पास इसका कोई तात्कालिक समाधान नहीं है. नेपाल के कुछ अधिकारियों के अनुसार भारत से समझौता होने की स्थिति में भी नेपाल चीन के रास्ते ज़रूरी सामानों को आयात करने की योजना पर आगे बढ़ेगा. वह भविष्य में इस तरह की परेशानी में नहीं फंसना चाहता है. नेपाल सरकार आगे क्या फैसला करती है और किस राह पर चलती है, इस पर भारत सरकार का आगे का रूख निर्भर करता है. लेकिन भारत किसी भी परिस्थिति में एक अच्छा दोस्त नहीं खोना चाहेगा.
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