खराब पिचों के कारण : टेस्ट किक्रेट तमाशा बन गया है

kohaliiiiiiiiiiiiभारतीय उप-महाद्वीप में खराब पिच को लेकर हमेशा से सवाल खड़े होते रहे हैं. भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच खेली जा रही हालिया टेस्ट सीरीज के तीसरे टेस्ट मैच में यह सवाल एक बार फिर जीवंत हो उठा. दोनों देशों के बीच मोहाली में खेला गया पहला टेस्ट तीन दिन में समाप्त हो गया, बैंगलुरू में खेला गया दूसरा टेस्ट बारिश की भेंट चढ़ गया, इसके बाद नागपुर में खेले गए सीरीज के तीसरे टेस्ट मैच भी तीसरे दिन ही खत्म हो गया और?भारत ने सीरीज में अपराजेय बढ़त हासिल कर ली. ऐसे में पिच पर सवाल उठने भी लाजिमी थे. नागपुर में तो अप्रत्याशित तौर पर पहले ही दिन पिच टूटने लगी. यदि दूसरे दिन लंच तक पिच से धूल उड़ने लगे तो गेंद जरूरत से ज्यादा स्पिन होगी ही. ऐसे में दक्षिण अफ्रीकी बल्लेेबाजों के पास आर अश्विन, रविंद्र जड़ेजा और अमित मिश्रा की घूमती गेंदों का कोई जवाब नहीं था और वे एक-एक करके  धराशायी होते चले गए.

आम तौर पर भारतीय खिलाड़ी इस बात की शिकायत करते हैं कि जब वे उप-महाद्वीप के  बाहर दौरों पर जाते हैं, तब उन्हें वहां ज्यादा घास वाली तेज़ पिचों पर खेलना पड़ता है. वहां की परिस्थितियां उप-महाद्वीप की परिस्थितियों से बिलकुल अलग होती हैं, ऐसे में विदेशी दौरों पर भारतीय टीम को अक्सर हार का मुंह देखना पड़ता है. ऐसे में यदि कोई टीम भारतीय उप-महाद्वीप का दौरा करती है और उसके  खिलाड़ियों को जल्दी टूटने वाले विकटों पर स्पिन गेंदबाजी का सामना करना पड़ता है और वे उसमें असफल रहते हैं. उनकी हार के  लिए विकेट जिम्मेदार कैसे हो जाता है जबकि भारतीयों की विदेशों हार के  लिए पिचों की बजाय बल्लेबाजों की तकनीक को जिम्मेदार ठहराया जाता है. यदि हर मेजबान देश अपने खिलाड़ियों की मदद करने वाले विकेट बनाता है तो भारत क्यों और कहां गलत है.

जब कभी भारतीय टीम विदेशी धरती पर धराशायी होती है उन्हीं पिचों पर मेज़बान देशों के बल्लेबाज नए-नए कीर्तिमान बनाते हैं. भारत में ठीक इसके उलट हो रहा है. दक्षिण अफ्रीकी बल्लेबाज भले ही इन पिचों पर ढेर हो रहे हों, लेकिन भारतीय बल्लेबाजों की स्थिति भी सुखद नहीं है. सीरीज के  पहले तीन टेस्ट मैचों में भारतीय बल्लेबाज भी घुटने टेकते दिखाई दिए. वे भी इन घुमावदार टेस्ट पिचों पर खुलकर बल्लेबाजी नहीं कर पा रहे हैं. सीरीज में कोई भी भारतीय बल्लेबाज शतक नहीं बना सका, साथ ही तीन टेस्ट मैचों में भारतीय टीम एक बार भी तीन सौ के आंकड़े को छू नहीं पाई. एक पूरे दिन भारतीय टीम के  लिए भी पिच पर बल्लेबाजी करना असंभव था. टीम इंडिया अधिकतम 76 ओवर तक पिच पर टिक पाई. इसे आप कैसा होम एडवांटेज कहेंगे. होम एडवांटेज बल्लेबाजों और गेंदबाजों दोनों को बराबर मिलना चाहिए. विदेशी धरती में उसी पिच पर गेंदबाज और बल्लेबाज दोनों के प्रदर्शन में संतुलन होता है लेकिन टीम इंडिया के  घरेलू सरजमीं पर प्रदर्शन में ऐसा संतुलन दिखाई नहीं पड़ रहा है.

भले ही टीम इंडिया अपनी जीत पर इतरा रही है लेकिन हकीकत यह है कि जीत में स्पिनर्स की स्किल से ज्यादा पिच का योगदान है  पिच इतनी खराब है कि भारत के  बल्लेबाज भी बड़ा स्कोर नहीं बना पा रहे हैं. लेकिन इससे तब कोई फर्क नहीं पड़ता जब टीम को जीत मिल रही है. मोहाली में तो फिर भी पिच सही थी, लेकिन नागपुर में तो हद हो गई. एक ऐसी पिच बनाई गई, जिस पर दुनिया की नंबर एक टीम साउथ अफ्रीका का टिकना तो दूर, खड़ा होना भी मुश्किल हो गया. ऐसा लग रहा है कि सिर्फ भारतीय स्पिनर ही टेस्ट मैच खेल रहे हैं. बल्लेबाज और तेज गेंदबाज तो बस टाइम पास कर रहे हैं. मौजूदा टेस्ट सीरीज के तीन मैचों में दक्षिण अफ्रीका की पांच पारियों के  50 में से 47 विकेट भारतीय स्पिनरों ने लिए हैं. ओपनिंग गेंदबाजी स्पिनर कर रहा है. यह क्रिकेट नहीं, तमाशा लग रहा है. आईसीसी को निश्चित तौर पर पिचों के निर्माण के लिए कुछ मापदंड स्थापित करने होंगे. क्या दर्शकों के  प्रति बीसीसीआई की कोई जिम्मेदारी नहीं है? क्या खेल स्तर में सुधार की बीसीसीआई की कोई जिम्मेदारी नहीं हैं? कहते हैं कि समय के  साथ खेल के स्तर में सुधार आता है, लेकिन पिचों को लेकर जो जंग चल रही है, वह कुल मिलाकर टेस्ट क्रिकेट के  भविष्य के  लिए ठीक नहीं है. यह टेस्ट क्रिकेट के  वजूद के  सामने सबसे बड़ा खतरा है. ऐसे भी टेस्ट मैच देखने के  लिए मैदान पर दर्शक नहीं उमड़ रहे हैं, उसमें भी जो दर्शक मैदान में खेल देखने आते हैं, उनकी रुचि भी इस तरह की नीरस, लो-स्कोरिंग और अप्रतिस्पर्धी क्रिकेट देखकर निश्चित तौर पर कम होगी. इस तरह की चुनौती से पार पाना थोड़ा मुश्किल जरूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं.

पूर्व पाकिस्तानी गेंदबाज वसीम अकरम ने हाल ही में एक कॉलम में लिखा कि आईसीसी को भी टेस्ट क्रिकेट के लिए तैयार होने वाली पिचों के निर्माण में अहम भूमिका निभानी होगी. पहले जिस तरह काउंटी क्रिकेट में इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड(ईसीबी) खराब पिच या साधारण पिच की वजह से रैंकिंग अंक घटा दिया करता था, कुछ ऐसी ही मैकनिज्म टेस्ट क्रिकेट में भी लानी होगी. ईसीबी की तर्ज पर अंक घटाने की प्रथा शुरू करनी चाहिए. जिसका सीधा असर मेजबान देश की विश्व रैंकिंग पर पड़े. ऐसी कोई व्यवस्था शुरू होने तक हमें नागपुर जैसी पिच पर अखाड़ा देखने को मिलता रहेगा. जहां गेंद मुश्किल से बल्ले पर आ रही थी. मेजबान टीम को लाभ मिलना चाहिए, इसका मैं समर्थन करता हूं, लेकिन जैसा हमने नागपुर में देखा वैसा बिलकुल भी नहीं होना चाहिए. यदि हार-जीत और अहम का यह खेल चलता रहा तो, यकीन मानिए टेस्ट क्रिकेट एक दिन हारकर दम तोड़ देगा. हार-जीत के लिए परिस्थितियों या मेजबानी का फायदा उठाने की स्पर्धा में क्रिकेट का बड़ा नुक़सान हो रहा है. उसी दौर में एक तरफ टेस्ट क्रिकेट के वजूद को बचाए रखने के लिए डे-नाइट टेस्ट जैसे प्रयोग हो रहे हैं, जहां पारंपरिक तरीकों से हटकर गुलाबी गेंद का इस्तेमाल हो रहा है. वहीं दूसरी तरफ भारत में स्पिन विकेटों पर पांच दिन तक खेले जाने वाले टेस्ट मैच तीन दिन में समाप्त हो रहे हैं. यदि आगे भी इसी तरह पिचें ही खिलाड़ियों के प्रदर्शन से ज्यादा हार-जीत का कारण बनती रहीं तो यह टेस्ट क्रिकेट के वजूद के खत्म होने की दिशा में आखिरी कदम साबित होगा. 

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