भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के ख़िलाफ़ आंदोलन : अपनी डफली, अपना राग

अन्ना ने अपनी नई पारी का आगाज किसानों के लिए एकता परिषद की यात्रा को पलवल से रवाना करके किया. इस दौरान वहां उन्होंने घोषणा की कि दिल्ली में उनके समर्थन में पंजाब, हरियाणा और पश्‍चिमी उत्तर प्रदेश के हज़ारों किसानों का हुजूम उमड़ेगा. लेकिन स्थिति ठीक इसके उलट दिखाई दी. 23 तारीख के कार्यक्रम में दादरी में ज़मीन अधिग्रहण का विरोध करने वाले भारतीय किसान मंच के सबसे ज़्यादा लोग दिखाई दिए. इसके अलावा मंच पर वही लोग नज़र आए, जो अन्ना के आंदोलन में हर जगह नज़र आते हैं. नहीं दिखाई दिए, तो वे किसान, जिनका भूमि अधिग्रहण से सीधा वास्ता है.

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Anna @ Jantar Mantar

लंबे अंतराल के बाद अन्ना हजारे आंदोलन की राह पर लौटे. उन्होंने एक बार फिर जंतर मंतर को अपनी जंग का मैदान बनाया. भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध में कई राजनीतिक और ग़ैर-राजनीतिक किसान संगठन पिछले कुछ महीनों से आंदोलन की तैयारी में जुटे थे. लेकिन इसी बीच अन्ना ने आंदोलन की घोषणा कर दी. इसके बाद आंदोलन की तैयारी में तथाकथित अन्ना समर्थक जुट गए. सबसे पहले 24 फरवरी को अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी जन-आंदोलन न्यास के बैनर तले एक दिवसीय धरना-प्रदर्शन की योजना बनाई गई थी, लेकिन अचानक कार्यक्रम में संशोधन कर उसे दो दिवसीय (23 और 24 फरवरी) कर दिया गया. साथ ही कार्यक्रम को पीवी राजगोपाल की एकता परिषद की यात्रा से भी जोड़ दिया गया, जिनकी मांग भूमिहीनों को आवास के लिए ज़मीन की है, न कि भूमि अधिग्रहण अध्यादेश का विरोध.

अन्ना ने किसानों के लिए अपनी नई पारी का आगाज एकता परिषद की यात्रा को पलवल से रवाना करके किया. इस दौरान वहां उन्होंने घोषणा की कि दिल्ली में उनके समर्थन में पंजाब, हरियाणा और पश्‍चिमी उत्तर प्रदेश के हज़ारों किसानों का हुजूम उमड़ेगा. लेकिन स्थिति ठीक इसके उलट दिखाई दी. 23 तारीख को कार्यक्रम में दादरी में ज़मीन अधिग्रहण का विरोध करने वाले भारतीय किसान मंच के सबसे ज़्यादा लोग दिखाई दिए. इसके अलावा मंच पर वही लोग नज़र आए, जो अन्ना के आंदोलन में हर जगह नज़र आते हैं. नहीं दिखाई दिए, तो वे किसान, जिनका भूमि अधिग्रहण से सीधा वास्ता है.
भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध में वामदलों और उनके सहयोगी संगठनों ने भी तैयारी की थी. उन्हें 24 फरवरी को संसद मार्ग पर विरोध प्रदर्शन करने की अनुुमति मिली. वामदलों के साथ एमडीएमके भी नज़र आई. 23 फरवरी को तो अन्ना अपने कार्यक्रम के मंच पर नज़र आए, लेकिन 24 तारीख को वह अपने ही मंच पर नहीं पहुुंचे. अब तक राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ मंच साझा न करने की बात करने वाले अन्ना हजारे कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय सचिव अतुल अंजान, एमडीएमके के राष्ट्रीय महासचिव वाइको और आम आदमी पार्टी के संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ नज़र आए. पहले तो अरविंद केजरीवाल को मंच पर चढ़ने नहीं दिया गया, लेकिन बाद में वह मंच पर पहुंच गए और उन्होंने लोगों को संबोधित भी किया.
एकता परिषद की जिस यात्रा का दिल्ली में स्वागत कर अन्ना को संबोधित करना था, वह समय से आंदोलन स्थल तक नहीं पहुंची. अगले दिन अन्ना ने यात्रा में आए लोगों को संबोधित किया. लेकिन, उससे पहले पीवी राजगोपाल गृहमंत्री राजनाथ सिंह के साथ हुई अपनी बातचीत से संतुष्ट नज़र आए. उन्हें राजनाथ सिंह ने मानसून सत्र में भूमिहीनों को भूमि देने संबंधी बिल लाने का आश्‍वासन दिया है. अचानक राजगोपाल के सुर कैसे बदल गए, यह बात उनकी पिछली यात्राओं के परिणामों से जाहिर हो जाती है. इसलिए इस बार भी उनके सुर बदलने से लोगों को ज़्यादा आश्‍चर्य नहीं हुआ. जब यात्रा को 24 तारीख की दोपहर तक जंतर मंतर पहुंच जाना था, तो इसमें हुई देरी को भी नियोजित माना जा रहा है.
भले ही भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध के लिए अन्ना को चेहरा बनाया गया था, लेकिन यहां हर कोई अपनी गोटियां फिट करने में लगा था. हर संगठन की अपनी डफली और अपना राग था. कोई भूमि संरक्षण की, तो कोई भूमि अधिकार की मांग कर रहा था. जो लोग देश के दूरदराज के इलाकों से आए थे, उनसे जब चौथी दुनिया संवाददाता ने यहां आने का कारण पूछा, तो वे एक सुर में बोलने लगे कि हमारी ज़मीन छीनी जा रही है. लेकिन वे भूमि अधिग्रहण अध्यादेश का नाम नहीं ले रहे थे. चित्रकूट, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, छिंदवाड़ा और मुंबई आदि से आए लोगों ने बताया कि वे तो अपने नेता के कहने पर यहां आए हैं. मेधा पाटकर के समर्थन में मुंबई से आए मोहम्मद ज़ैनुद्दीन ने बताया कि हम सालों से मुंबई के मलाड में रहते हैं. सरकार हमें वहां से बेदखल करना चाहती है. हम तो घर बचाओ-घर बनाओ आंदोलन से जुुड़े हैं. हमें तो अपना घर बचाना है.
अन्ना के कार्यक्रम से इतर दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) की अलग बैठक चल रही थी. इस बैठक में देश भर से आए 31 किसान संगठनों के सदस्यों ने अध्यादेश के मसले पर अपने विचार रखे. सभी ने एक सुर में इस अध्यादेश को निरस्त करने की मांग की. जब उनसे पूछा गया कि क्या आप इसी मसले पर चल रहे अन्ना हजारे के आंदोलन का समर्थन करते हैं, तो उन्होंने कहा कि वे समर्थन तो करते हैं, लेकिन उनके कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे. बीकेयू के सदस्यों ने कहा कि सरकार यदि इस अध्यादेश को वापस नहीं लेती है, तो 18 मार्च को वे जंतर मंतर पर एक लाख किसानों की महापंचायत का आयोजन करेंगे. तमाम किसान संगठन भूमि अधिग्रहण के मुुद्दे पर वैचारिक रूप से एक हैं, लेकिन वे अपनी ताकत का प्रदर्शन अलग-अलग तरीके से करना चाहते हैं. बीकेयू अध्यादेश के विरोध में किसान महापंचायत आयोजित करने की बात कर रहा है, तो अन्ना सरकार को चार महीने का अल्टीमेटम दे रहे हैं. कांग्रेस पहले ही संसद में भाजपा को घेरने में लगी हुई है. अब उसने सड़क पर भी मोदी सरकार को घेरना शुरू कर दिया है. अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस ने जंतर मंतर पर 25 फरवरी को ज़मीन वापसी आंदोलन के रूप में विरोध प्रदर्शन किया. भाजपा को घरेने के लिए मिले इस बड़े मा़ैके के कार्यक्रम से राहुल गांधी नदारद रहे. ज़मीन अधिग्रहण अध्यादेश के बहाने हर कोई अपनी खोई ज़मीन वापस पाना चाहता है. मुद्दा सही है, लेकिन विपक्षी दलों के बीच एकता की कमी आड़े आ रही है.

 

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