• व्यापमं की व्यापक कहानी महाघोटाले के आईटी दस्तावेजों की जुबानी : सीबीआई की राह बहुत कठिन होगी

    3333व्यापमं घोटाले की जांच अंततः सीबीआई से कराने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दे ही दिया. इसके पहले इस मामले की जांच सीबीआई से कराए जाने के संबंध में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जबलपुर हाईकोर्ट में की थी, लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने की वजह से हाईकोर्ट ने इस विषय में कोई निर्णय नहीं लिया. सीबीआई जांच के आदेश के बाद बात यहां आकर अटक गई है कि क्या सीबीआई इस मामले की तह तक पहुंच पाएगी? क्या सीबीआई उस मामले का पर्दाफाश कर पाएगी, जिसमें 2500 लोग आरोपी हैं और 500 लोग फरार हैं? क्या छह साल से व्यापमं में हो रही धांधली के अब तक एकत्र सबूतों के आधार पर सीबीआई मामले के मास्टरमाइंड और रसूखदार लोगों को सलाखों के पीछे पहुंचा पायेगी? क्या उनके खिलाफ वह नए और पुख्ता सबूत जुटा पायेगी? क्या सीबीआई इस मामले से जुड़े 47 लोगों की मौत की अबूझ पहेली को सुलझा पाएगी? क्या इसके बाद मामले से जुड़े लोगों की मौतों का सिलसिला बंद हो जाएगा? इन सवालों के जवाब ढूंढना बेहद जरूरी है. [Read More…]

  • व्यापमं के बाद अब डीमेट घोटाला…

    FINAL-Page-7मध्य प्रदेश के बहुचर्चित व्यापमं घोटाले की जांच अभी चल ही रही थी, तब तक मध्य प्रदेश के निजी चिकित्सा संस्थानों में प्रवेश में घोटाले का पर्दाफाश हो गया. अनुमान लगाया जा रहा है कि प्रदेश के निजी मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में प्रवेश के होने वाली परीक्षा डीमेट से जुड़ा घोटाला तकरीबन दस हजार करोड़ रुपये का है. शासन के कोटे से निजी डेंटल और मेडिकल कॉलेजों में भरी जाने वाली सीटों को भरने में पिछले 10 सालों में जबरदस्त तरीके से हेराफेरी की गई है. इसके लिए प्राइवेट कॉलेजों ने तरह-तरह के दांव-पेंच का इस्तेमाल किया और करोड़ों रुपये वारे-न्यारे कर दिए.
    मध्य प्रदेश डेंटल एंड मेडिकल एडमीशन टेस्ट (डीमेट) की शुरुआत [Read More…]

  • व्यापमं घोटाला : सच के सिपाहियों की जान कौन बचाएगा

    sach-ke-sipahiaashish chaturvedi साल 2005 में जब आरटीआई क़ानून लागू हुआ था, तब से आज तक सैकड़ों आरटीआई कार्यकर्ता अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं. कुल मिलाकर यह कि जो भी भ्रष्टाचार के ख़िला़फ आवाज़ उठाएगा, उसे अपनी जान गंवानी पड़ेगी. बहरहाल, साल 2010 में यूपीए-2 सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को सुरक्षा देने के उद्देश्य से एक बिल लेकर आई, जिसे पब्लिक इंटरेस्ट डिसक्लोज़र ऐंड प्रोटेक्शन फॉर पर्सन्स मेकिंग डिसक्लोज़र बिल 2010 नाम दिया गया… संक्षेप में कहें, तो व्हिसिल ब्लोअर बिल 2010. व्हिसिल ब्लोअर बिल 2010 में सरकारी धन के दुरुपयोग और सरकारी संस्थाओं में हो रहे घोटालों की जानकारी देने वाले व्यक्ति को व्हिसल ब्लोअर माना गया है. यानी भ्रष्टाचार के ख़िला़फ बिगुल बजाने वाला. इस बिल में केंद्रीय सतर्कता आयोग(सीवीसी) को अतिरिक्तअधिकार दिए गए. सीवीसी को दीवानी अदालत जैसी शक्तियां भी देने की बात कही गई. सीवीसी भ्रष्टाचार के ख़िला़फ आवाज़ उठाने वालों के ख़िला़फ अनुशासनात्मक कार्रवाई रोक सकता है. भ्रष्टाचार की जानकारी देने वाले की पहचान गुप्त रखने की ज़िम्मेदारी सीवीसी की है. अगर पहचान उजागर होती है, तो ऐसे अधिकारियों के ख़िला़फ शिक़ायत भी की जा सकेगी. इस विधेयक के दायरे में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी भी शामिल हैं. बहरहाल, इस विधेयक में सीवीसी को जितनी ज़िम्मेदारी सौंपी गई, सीवीसी उसे पूरा कर पाने में सफल होगा या नहीं, यह एक सवाल था. जैसे, क्या सीवीसी की सांगठनिक संरचना इतनी बड़ी है, जिससे वह भारत जैसे बड़े देश में व्याप्त भ्रष्टाचार की समस्या से लड़ पाए? राज्यों, ज़िलों और पंचायतों में फैले भ्रष्ट्राचार से कैसे निबटेगा सीवीसी? [Read More…]