• व्यापमं घोटाला : सीबीआई जांच से तेज़ ज़मानत की रफ्तार

    00बीती 9 जुलाई को व्यापमं मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को सौंपी थी तब ऐसा लगा था कि सीबीआई जल्द से जल्द इस मामले की जांच करके आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुंचा देगी. विडंबना देखिए, हुआ इसका उल्टा. पिछले छह महीने में सीबीआई ने ऐसी जांच की कि वह उन आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र भी नहीं दायर कर सकी जिन्हें एसआईटी ने हाईकोर्ट की निगरानी में सलाखों के पीछे पहुंचाया था. इसके बाद एक-एक करके व्यापमं मामले के बड़े-बड़े आरोपी जेल से बाहर आने में सफल हो गए. जमानत पर रिहा होने वालों में हालिया नाम मध्य प्रदेश के पूर्व उच्च और तकनीकी शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा का है. शर्मा पिछले 18 महीने से जेल में थे, लेकिन सीबीआई द्वारा उनके  खिलाफ चलान न पेश कर पाने की वजह से जबलपुर हाईकोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी. जून 2014 में मध्य प्रदेश सरकार में रहते हुए व्यावसायिक भर्ती परीक्षाओं में धांधली के आरोप में उन्हें जेल भेजा गया था. उनके  खिलाफ सात मामले दर्ज किए गए थे. छह मामलों में उन्हें पहले ही जमानत मिल चुकी थी लेकिन अंतिम मामले में उन्हें जमानत मिलने में लंबा वक्त लग गया. [Read More…]

  • व्यापमं घोटाला : ऐसी सीबीआई जांच से न्याय नहीं मिलेगा

     

     

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    भारत सचमुच अद्भुत देश है. यहां के घोटाले अद्भुत हैं. पानी, कोयला, हवा, तरंग, कुछ भी नहीं बचा है. इसी तरह यहां की जांच भी अद्भुत है. जैसे, सीबीआई जांच. कोयला घोटाला याद कीजिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, तोता पिंजरे में कैद है, तोते को आज़ाद कीजिए. सरकार बदल गई, लेकिन क्या पिंजरे का ताला खुला? इस सवाल का जवाब व्यापमं घोटाले की जांच से निकलता है. घोटाले की शुरुआती जांच देखकर तो लगता है कि तोता अभी भी पिंजरे में है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के ढाई महीने बाद भी सीबीआई व्यापमं घोटाले की जांच पूरी तरह अपने हाथों में नहीं ले सकी है. खुद सीबीआई ने शपथ-पत्र देकर कहा है कि उसके पास इतने संसाधन नहीं हैं कि वह डीमैट घोटाले की जांच कर सके. व्यापमं घोटाले में 215 एफआईआर दर्ज हैं, 2,500 से ज़्यादा आरोपी हैं, जिनमें से 600 आरोपी फरार हैं. सीबीआई को उन्हें पकड़ना है, पूछताछ करनी है, लेकिन ढाई महीने बाद भी अब तक सीबीआई महज 107 मामले अपने हाथों में ले पाई है. अब आगे क्या होगा, इसका अनुमान लगाते रहिए. फिलहाल, इन्हीं तमाम सवालों के जवाब तलाश रही है चौथी दुनिया की यह विशेष रिपोर्ट:-

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  • व्यापमं घोटाला : सच के सिपाहियों की जान कौन बचाएगा

    sach-ke-sipahiaashish chaturvedi साल 2005 में जब आरटीआई क़ानून लागू हुआ था, तब से आज तक सैकड़ों आरटीआई कार्यकर्ता अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं. कुल मिलाकर यह कि जो भी भ्रष्टाचार के ख़िला़फ आवाज़ उठाएगा, उसे अपनी जान गंवानी पड़ेगी. बहरहाल, साल 2010 में यूपीए-2 सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को सुरक्षा देने के उद्देश्य से एक बिल लेकर आई, जिसे पब्लिक इंटरेस्ट डिसक्लोज़र ऐंड प्रोटेक्शन फॉर पर्सन्स मेकिंग डिसक्लोज़र बिल 2010 नाम दिया गया… संक्षेप में कहें, तो व्हिसिल ब्लोअर बिल 2010. व्हिसिल ब्लोअर बिल 2010 में सरकारी धन के दुरुपयोग और सरकारी संस्थाओं में हो रहे घोटालों की जानकारी देने वाले व्यक्ति को व्हिसल ब्लोअर माना गया है. यानी भ्रष्टाचार के ख़िला़फ बिगुल बजाने वाला. इस बिल में केंद्रीय सतर्कता आयोग(सीवीसी) को अतिरिक्तअधिकार दिए गए. सीवीसी को दीवानी अदालत जैसी शक्तियां भी देने की बात कही गई. सीवीसी भ्रष्टाचार के ख़िला़फ आवाज़ उठाने वालों के ख़िला़फ अनुशासनात्मक कार्रवाई रोक सकता है. भ्रष्टाचार की जानकारी देने वाले की पहचान गुप्त रखने की ज़िम्मेदारी सीवीसी की है. अगर पहचान उजागर होती है, तो ऐसे अधिकारियों के ख़िला़फ शिक़ायत भी की जा सकेगी. इस विधेयक के दायरे में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी भी शामिल हैं. बहरहाल, इस विधेयक में सीवीसी को जितनी ज़िम्मेदारी सौंपी गई, सीवीसी उसे पूरा कर पाने में सफल होगा या नहीं, यह एक सवाल था. जैसे, क्या सीवीसी की सांगठनिक संरचना इतनी बड़ी है, जिससे वह भारत जैसे बड़े देश में व्याप्त भ्रष्टाचार की समस्या से लड़ पाए? राज्यों, ज़िलों और पंचायतों में फैले भ्रष्ट्राचार से कैसे निबटेगा सीवीसी? [Read More…]