आईएसएल के दूसरे सीजन के फाइनल मुक़ाबले में चेन्नईयन एफसी ने मेजबान गोवा 3-2 के अंतर से हराकर खिताब पर क़ब्जा कर लिया. मैच के पहले हाफ में मुक़ाबला बराबरी पर था, दोनों ही टीमें पहले हाफ में कोई गोल नहीं कर सकीं. लेकिन दूसरे हाफ में दोनों टीमों ने आक्रामक खेल का प्रदर्शन किया. चेन्नई के ब्रूनो पेलीसारी ने मैच के 54वें मिनट में पेनल्टी के जरिए गोल करके टीम को 1-0 की बढ़त दिला दी. बहरहाल, चेन्नई की यह बढ़त ज्यादा देर तक नहीं टिकी. मैच के 58वें मिनट में थोंगखोसिएम होकिप के गोल की बदौलत गोवा ने 1-1 से बराबरी कर ली. 87वें मिनट तक मुक़ाबला 1-1 की बराबरी पर था, लेकिन 87 वें मिनट में ज्योसफ्रे ने गोवा की ओर से गोल दागा. 2-1 की बढ़त देख गोवा के प्रशंसक स्टेडियम में झूमने लगे. लेकिन उनकी यह खुशी 3 मिनट से ज्यादा नहीं टिक सकी. मैच के 90वें मिनट में गोवा के गोलकीपर लक्ष्मीकांत कट्टीमनी के आत्मघाती(ओन गोल) की वजह से स्कोर दो-दो की बराबरी पर आ गया. लेकिन 90वें मिनट में चेन्नई के 23 वर्षीय कोलंबियन स्ट्राइकर स्टीवन मेंडोजा ने गजब की फुर्ती दिखाई और मैच का पांसा चेन्नई के पाले में पलट दिया. इसके बाद गोवा वापसी नहीं कर सकी और गोवा के विजेता बनने के अरमानों पर पानी फिर गया. फाइनल मुकाबले में दोनों ही टीमों के बीच जोरदार टक्कर देखने को मिली. मैच के अंतिम क्षण बेहद रोमांचक रहे, जिसमें चेन्नईयन एफसी बाजी मारने में कामयाब रहा. गोवा की टीम ने टूर्नामेंट की शुरुआत अपने घर में दिल्ली को हराकर की थी. इसके बाद चेन्नईयन ने उन्हें 4-0 के अंतर से मात दी. इसके बाद गोवा ने मुंबई को 7-0 के अंतर से हराते ही सेमीफाइनल के लिए क्वालीफाई कर लिया था. उसके बाद उन्होंने कोलकाता को भी मात दी. 14 लीग मैचों में 25 अंक हासिल कर वह अंकतालिका में पहले पायदान पर रही. सेमीफाइनल के पहले लेग में दिल्ली ने गोवा को 1-0 से मात दी लेकिन दूसरे लेग में 3-0 के अंतर से जीत हासिल कर फाइनल में जगह बना पाने में सफल रही. दिल्ली को छोड़कर अन्य तीन टीमें पहले सीजन के सेमीफाइनल में पहुंची थीं. चेन्नईयन एफसी के लिए यह सीजन काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा. शुरू में टीम बेहद कमजोर नज़र आ रही थी. लेकिन घर के बाहर उन्होंने गोवा को 4 गोलों से पराजित करके एक नई उम्मीद जगा दी. बावजूद इसके वह अंतिम चार में पहुंचने की दावेदार नहीं लग रही थी. लेकिन अचानक इस टीम ने शानदार खेल दिखाते हुए लगातार 4 मैच जीते, जिसमें उनके स्ट्राइकर स्टीवन मेंडोज़ा ने शानदार प्रदर्शन किया. सबसे खास बात यह रही कि जब-जब मेंडोजा ने चेन्नईयन के लिए गोल किए तब-तब जीत उनके हाथ लगी.
आईएसएल-2 की विजेता बनने पर चेन्नईयन एफसी को 8 करोड़ रुपये की इनामी राशि मिली. उप-विजेता एफसी गोवा की टीम को 4 करोड़ रुपये मिले. आईएसएल-2 में कुल 60 मुक़ाबले खेले गए. इस दौरान कुल 186 गोल हुए. इस सीजन में पहले सीजन की तुलना में ज्यादा गोल हुए. चेन्नई की ओर से खेलने वाले स्टीवन मेंडोजा ने सबसे ज्यादा गोल किए. उन्हें गोल्डन बूट और गोल्डन बॉल के खिताब का पुरस्कार दिया गया. चेन्नईयन के अरमेनियाई गोलकीपर अपोला एडिमा इडेल बेते को गोल्डन गल्व खिताब से नवाजा गया. पिछले सीजन में वह एटलेटिको डी कोलकाता की तरफ से खेले थे.
इस बार भी पूरे टूर्नामेंट में विदेशी खिलाड़ियों का ही दबदबा रहा. पांच सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ियों में भारतीय कप्तान सुनील छेत्री ही शामिल हैं. उन्हें सूची में चौथा स्थान मिला. वह आईएसएल के सबसे महंगे खिलाड़ी थे. इस सीजन पहले सीजन के मुक़ाबले ज्यादा दर्शक मैदान में खेल देखने पहुंचे. लेकिन फुटबॉल के स्तर में बहुत ज्यादा अंतर नहीं दिखाई दिया, न वह दीवानगी जिसके लिए दुनिया भर में फुटबॉल को जाना जाता है. इस बार भी कुछ भारतीय खिलाड़ियों से इतर अन्य किसी खिलाड़ी ने ध्यान आकर्षित नहीं किया. नजरें सुनील छेत्री और रॉबिन सिंह पर ही टिकी रहीं. जाने-माने फुटबॉल कॉमेन्ट्रेटर जॉन हेम ने चौथी दुनिया से बातचीत में बताया कि भारत में फुटबॉल के उद्धार के लिए एक सुपर स्टार की आवश्यक्ता है. जिस तरह सचिन तेंदुलकर के पदार्पण के बाद भारत में क्रिकेट की दशा दिशा बदल गई. फिलहाल भारत या कहें आईएसएल में दुनिया के बड़े खिलाड़ियों मसलन मेसी या रोनाल्डो का खेल पाना एक सपने जैसा है, यह कब पूरा होगा यह कह पाना अभी मुश्किल है. लेकिन भारत में दुनिया के बड़े फुटबॉल क्लबों की ट्रेनिंग एकेडमी खुलनी चाहिए, जिससे यहां का छिपा टैलेंट लोगों के सामने आ सके और उसे तराशा जा सके. ऐसा करने पर ही हम बेहतरीन खिलाड़ियों की नई खेप तैयार कर सकते हैं जो तकनीक और दक्षता के आधार पर दुनिया के बेहतरीन खिलाड़ियों से मुक़ाबला कर पाएंगे. फिलहाल आईएसएल में दुनिया के बड़े और नामचीन खिलाड़ियों का खेल पाना भले ही संभव नहीं है लेकिन उन टीमों के बी और सी ग्रेड की टीमों के उभरते खिलाड़ियों को खेलने का मौका मिलना चाहिए, जिससे आईएसएल के मैचों में तेजी आएगी, इसमें अच्छा प्रदर्शन करने पर उन खिलाड़ियों को अपने मुख्य क्लबों की मुख्य टीमों के लिए खेलने का मौका मिलेगा. ऐसे भी आईएसएल का सीजन तीन महीने का है जिसमें खेलने के लिए खिलाड़ी नहीं आ सकते, यदि वे आईएसएल में खेलते हैं तो उन्हें 9 महीने खेल से दूर रहना होगा जो कि उनके लिए नुक़सान दायक है. ऐसे में क्लब दो से तीन महीने के लिए अपने जूनियर खिलाड़ियों को भेज सकते हैं. उदाहरण के लिए जिस तरह स्पेनिश क्लब एटलेटिको मैड्रिड की एटलेटिको डि कोलकाता में हिस्सेदारी है वैसा ही अन्य क्लबों को भी करना चाहिए. ऐसा करने पर ही खेल और खिलाड़ियों के स्तर में विश्वस्तरीय सुधार आएगा.
वहीं भारत के जाने माने खेल पत्रकार और विश्लेषक नोवी कपाड़िया का मानना है कि आईएसएल पूरी तरह सुपर फीशियल है. यदि इसका लक्ष्य भारतीय खिलाड़ियों को मौके देना और भारतीय फुटबॉल को विश्वस्तरीय बनाना है तो खिलाड़ियों की बेहतर ट्रेनिंग पर काम करना होगा. अभी जो कुछ भी आईएसएल के रूप में हो रहा है उससे भारतीय फुटबॉल को कोई दीर्घकालिक फायदा नहीं होने वाला है. यह सच है कि आईएसएल से फुटबॉल को एक नया दर्शक वर्ग मिला है, लेकिन खिलाड़ियों के मामले में बात कुछ गिने चुने खिलाड़ियों पर आकर रुक जाती है. आईलीग हो, आईएसएल हो या फिर कोई दूसरी प्रतियोगिता प्रशंसक किसी एक खिलाड़ी और टीम के साथ खुद को नहीं जोड़ पाते हैं. ऐसे में आप एक कमिटेड दर्शक वर्ग नहीं बना सकते जैसा कि यूरोपीय क्लबों के साथ होता है. आईएसएल से फुटबॉल को पब्लिसिटी मिल रही है, स्टेडियम का इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहतर हो गया है मैदानों की सरफेस अच्छी हो गई है, लेकिन खिलाड़ियों को विश्वस्तरीय अनुभव नहीं मिल पा रहा है. दुनिया के जो भी पुराने बेहतरीन खिलाड़ी आईएसएल के लिए खेल रहे हैं, उनमें से बहुत कम खिलाड़ी अंग्रेजी जानते हैं. भारतीय खिलाड़ी भी विभिन्न क्षेत्रों के हैं जिन्हें अंग्रेजी भी बहुत बेहतर नहीं आती है. उदाहरण के लिए दिल्ली की टीम को ही ले लें, उनके कोच और मार्की प्लेयर रोबर्टो कार्लोस हैं, जिन्हें पुर्तगाली आती है, उनसे सीधे तौर पर भारतीय खिलाड़ियों का बात करना संभव नहीं है, ट्रांसलेटर के साथ बात करने की अपनी सीमाएं हैं, ऐसे में जो बारीकियां व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर बातचीत के जरिए सीखी जा सकती हैं वह भारतीयों के लिए संभव नहीं है. लेकिन गोवा इसमें अपवाद है, क्योंकि गोवा में पुर्तगाली बोली जाती है और उस टीम में अधिकांश खिलाड़ी ब्राजील के हैं. दूसरी तरफ फुटबॉल से भारतीय दर्शक अपने को नहीं जोड़ पा रहे हैं. कुछ खिलाड़ियों को छोड़े दें तो उत्तर भारत के किसी भी खिलाड़ी की राष्ट्रीय पहचान नहीं है. नॉर्थ-ईस्ट यूनाइटेड और गोवा को छोड़कर आईएसएल की अन्य टीमें अपनी क्षेत्रीय पहचान नहीं बना पा रही हैं. जब तक आईएसएल में टीमों के पास क्षेत्रीय पहचान वाले खिलाड़ी नहीं होंगे जिनसे उस शहर के लोग खुद को जोड़ सकें , तब तक आईएसएल से ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है जिससे भारतीय फुटबॉल जगत की काया पलट हो सके. आईएसएल की शुरूआत के बाद भारतीय टीम अपनी सबसे खराब रैंकिंग में पहुंच गई है. उसे भूटान जैसी टीम के सामने भी संघर्ष करना पड़ रहा है. दुनिया के 190 देशों में फुटबॉल सबसे लोकप्रिय खेल है, ऐसे में आप दूसरे देशों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते हैं. आईएसएल अभी दो कदम आगे बढ़ा है बहुत सी चुनौतियां हैं, जिन्हें पार करने पर ही स्थिति बेहतर हो सकती है.
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