• उम्मीद है, सीबीआई एसटीएफ जैसी ग़लती नहीं करेगीः पारस सकलेचा

    मध्य प्रदेश के पूर्व विधायक और व्यापमं प्रकरण के पहले  व्हिसिल ब्लोअर पारस सकलेचा ने चौथी दुनिया संवाददाता नवीन चौहान से एक लंबी बातचीत की. उन्होंने प्रकरण से संबंधित कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर बड़ी बेबाकी से रोशनी डाली. पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश.


    व्यापमं और डीमेट घोटाले में आपस में क्या संबंध है?

    व्यापमं एक सरकारी संस्था है, जो विभिन्न परीक्षाएं कराती है, जिनमें से एक है पीएमटी, जो घोटाले की वजह से चर्चा में है. मध्य प्रदेश के सभी सरकारी कॉलेजों और निजी कॉलेजों की 42 प्रतिशत सीटों के लिए पीएमटी परीक्षा ली जाती है. निजी कॉलेजों की सीटों के लिए जो परीक्षा होती है, उसे कहते हैं डीमेट. सुप्रीम कोर्ट के 27 मई, 2009 के फैसले के अनुसार सीटों का बंटवारा हुआ कि निजी कॉलेजों की 42 प्रतिशत शासकीय सीटें पीएमटी के माध्यम से भरी जाएंगी और मैनेजमेंट की 43 प्रतिशत सीटें निजी कॉलेज खुद परीक्षा लेकर डीमेट के माध्यम से भरेंगे.

    [Read More…]

  • व्यापमं की व्यापक कहानी महाघोटाले के आईटी दस्तावेजों की जुबानी : सीबीआई की राह बहुत कठिन होगी

    3333व्यापमं घोटाले की जांच अंततः सीबीआई से कराने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दे ही दिया. इसके पहले इस मामले की जांच सीबीआई से कराए जाने के संबंध में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जबलपुर हाईकोर्ट में की थी, लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने की वजह से हाईकोर्ट ने इस विषय में कोई निर्णय नहीं लिया. सीबीआई जांच के आदेश के बाद बात यहां आकर अटक गई है कि क्या सीबीआई इस मामले की तह तक पहुंच पाएगी? क्या सीबीआई उस मामले का पर्दाफाश कर पाएगी, जिसमें 2500 लोग आरोपी हैं और 500 लोग फरार हैं? क्या छह साल से व्यापमं में हो रही धांधली के अब तक एकत्र सबूतों के आधार पर सीबीआई मामले के मास्टरमाइंड और रसूखदार लोगों को सलाखों के पीछे पहुंचा पायेगी? क्या उनके खिलाफ वह नए और पुख्ता सबूत जुटा पायेगी? क्या सीबीआई इस मामले से जुड़े 47 लोगों की मौत की अबूझ पहेली को सुलझा पाएगी? क्या इसके बाद मामले से जुड़े लोगों की मौतों का सिलसिला बंद हो जाएगा? इन सवालों के जवाब ढूंढना बेहद जरूरी है. [Read More…]

  • व्यापमं के बाद अब डीमेट घोटाला…

    FINAL-Page-7मध्य प्रदेश के बहुचर्चित व्यापमं घोटाले की जांच अभी चल ही रही थी, तब तक मध्य प्रदेश के निजी चिकित्सा संस्थानों में प्रवेश में घोटाले का पर्दाफाश हो गया. अनुमान लगाया जा रहा है कि प्रदेश के निजी मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में प्रवेश के होने वाली परीक्षा डीमेट से जुड़ा घोटाला तकरीबन दस हजार करोड़ रुपये का है. शासन के कोटे से निजी डेंटल और मेडिकल कॉलेजों में भरी जाने वाली सीटों को भरने में पिछले 10 सालों में जबरदस्त तरीके से हेराफेरी की गई है. इसके लिए प्राइवेट कॉलेजों ने तरह-तरह के दांव-पेंच का इस्तेमाल किया और करोड़ों रुपये वारे-न्यारे कर दिए.
    मध्य प्रदेश डेंटल एंड मेडिकल एडमीशन टेस्ट (डीमेट) की शुरुआत [Read More…]

  • व्यापमं घोटाला : सच के सिपाहियों की जान कौन बचाएगा

    sach-ke-sipahiaashish chaturvedi साल 2005 में जब आरटीआई क़ानून लागू हुआ था, तब से आज तक सैकड़ों आरटीआई कार्यकर्ता अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं. कुल मिलाकर यह कि जो भी भ्रष्टाचार के ख़िला़फ आवाज़ उठाएगा, उसे अपनी जान गंवानी पड़ेगी. बहरहाल, साल 2010 में यूपीए-2 सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को सुरक्षा देने के उद्देश्य से एक बिल लेकर आई, जिसे पब्लिक इंटरेस्ट डिसक्लोज़र ऐंड प्रोटेक्शन फॉर पर्सन्स मेकिंग डिसक्लोज़र बिल 2010 नाम दिया गया… संक्षेप में कहें, तो व्हिसिल ब्लोअर बिल 2010. व्हिसिल ब्लोअर बिल 2010 में सरकारी धन के दुरुपयोग और सरकारी संस्थाओं में हो रहे घोटालों की जानकारी देने वाले व्यक्ति को व्हिसल ब्लोअर माना गया है. यानी भ्रष्टाचार के ख़िला़फ बिगुल बजाने वाला. इस बिल में केंद्रीय सतर्कता आयोग(सीवीसी) को अतिरिक्तअधिकार दिए गए. सीवीसी को दीवानी अदालत जैसी शक्तियां भी देने की बात कही गई. सीवीसी भ्रष्टाचार के ख़िला़फ आवाज़ उठाने वालों के ख़िला़फ अनुशासनात्मक कार्रवाई रोक सकता है. भ्रष्टाचार की जानकारी देने वाले की पहचान गुप्त रखने की ज़िम्मेदारी सीवीसी की है. अगर पहचान उजागर होती है, तो ऐसे अधिकारियों के ख़िला़फ शिक़ायत भी की जा सकेगी. इस विधेयक के दायरे में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी भी शामिल हैं. बहरहाल, इस विधेयक में सीवीसी को जितनी ज़िम्मेदारी सौंपी गई, सीवीसी उसे पूरा कर पाने में सफल होगा या नहीं, यह एक सवाल था. जैसे, क्या सीवीसी की सांगठनिक संरचना इतनी बड़ी है, जिससे वह भारत जैसे बड़े देश में व्याप्त भ्रष्टाचार की समस्या से लड़ पाए? राज्यों, ज़िलों और पंचायतों में फैले भ्रष्ट्राचार से कैसे निबटेगा सीवीसी? [Read More…]

  • व्यापमं घोटाला मौत की सुरंग बन गया है

    33भारत में घोटालों का इतिहास बहुत बड़ा है, लेकिन मध्य प्रदेश में हुए व्यापमं घोटाला अपने आप में अद्भुत है. इस घोटाले की जड़ें कहां तक फैली हैं, इसका अंदाजा अब तक नहीं लगाया जा सका है. इस मामले से जुड़े 40 लोगों की अब तक मौत हो चुकी है. मौत का यह आंकड़ा बिहार में अपने समय के बहुचर्चित चारा घोटाले ने भी नहीं छुआ था. व्यापमं घोटाले में आए दिन रहस्यमयी मौत हो रही है, जिसकी गुत्थी आज तक नहीं सुलझाई जा सकी है. मौतों का सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है. सुशासन का दावा करने वाले शिवराज का क्या यही है सुशासन?   [Read More…]

  • भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिला़फ : किसान गोलबंद हो रहे हैं

    09बीते पांच मई को दिल्ली के संसद मार्ग पर देश भर से आए तीन सौ जन-संगठनों एवं राजनीतिक दलों ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध में एक बार फिर प्रदर्शन किया. प्रदर्शन में मुख्य रूप से वामदलों के किसान एवं मज़दूर संगठनों ने शिरकत की और सरकार को चुनौती दी कि वह भले ही संसद में अध्यादेश किसी भी तरह पारित करा ले, लेकिन किसान किसी भी क़ीमत पर उसे देश में लागू नहीं होने देंगे. इस भूमि अधिकार संघर्ष रैली में शामिल होने महाराष्ट्र के रायगढ़ से आईं उल्का महाजन ने कहा कि कृषि भूमि और मुआवज़े के बीच कोई संबंध नहीं है. यदि आज किसान कमज़ोर है, तो उसकी वजह कृषि नीति है [Read More…]

  • पश्चिम बंगाल का निकाय चुनाव : ममता का जादू बरकरार

    mamataअगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमी-फाइनल समझे जा रहे पश्चिम बंगाल नगर निकाय चुनाव में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने एक बार परचम लहरा दिया है. इस जीत से तृणमूल कांगे्रस ने अपने विरोधियों को संदेश दिया है कि राज्य की सत्ता से उसे बेदखल करना आसान नहीं है. ऐतिहासिक जीत के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि तृणमूूल की जीत उन प्रतिद्वंद्वी ताकतों के लिए करारा जवाब है, जो उनकी और पार्टी की छवि खराब करने का अभियान चला रही हैं. लेकिन, वामदलों ने ममता बनर्जी के इस दावे को यह कहकर नकार दिया कि चुनावी नतीजे जनता की सही राय व्यक्त नहीं करते, क्योंकि इस चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली और हिंसा हुई है, मतदाताओं को मतदान करने से रोका गया है. [Read More…]

  • भूमि अधिग्रहण अध्यादेश : सियासत जारी है

    किसान की ज़मीन पर देश के राजनीतिक दल वोटों की फसल उगाने की पुरजोर कोशिश में जुटे हुए हैं. राजधानी दिल्ली में संसद से सड़क तक, रामलीला मैदान से जंतर-मंतर तक भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के ़िखला़फ नित नए राजनीतिक रंग दिखाई पड़ रहे हैं. सबके पास स्क्रिप्ट एक ही है, हर दिन केवल किरदार बदल रहे हैं. 

    11111111

    राजनीतिक दल हों या ग़ैर-राजनीतिक, हर कोई केंद्र सरकार पर वर्ष 2013 के भूमि अधिग्रहण क़ानून में किए गए बदलाव वापस लेने का दबाव बनाने की कोशिश में है. ऐसी ही एक कोशिश रामलीला मैदान में कांग्रेस और जंतर-मंतर में आम आदमी पार्टी ने भी की. कांग्रेस की रैली गुटबाजी की भेंट चढ़ गई, तो आम आदमी पार्टी की रैली को किसान गजेंद्र सिंह की मौत ने कलंकित कर दिया. 19 अप्रैल को हुई कांग्रेस की रैली को किसान-खेत मज़दूर रैली नाम दिया गया था, लेकिन यह रैली पूरी तरह कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के अज्ञातवास के बाद राजनीतिक वापसी पर केंद्रित थी. रैली से दो दिन पहले राहुल गांधी देश वापस आए. अगले दिन उन्होंने किसानों से मुलाकात की और 19 अप्रैल को रामलीला मैदान से मोदी सरकार को वर्ष 2013 के क़ानून में बदलाव न करने देने की चुनौती दे डाली. तक़रीबन दो महीने लंबी छुट्टी के बाद लौटे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने देश भर से आए किसानों को संबोधित करते हुए उन्हें आश्वासन दिया कि वह उनकी लड़ाई लड़ेंगे. [Read More…]

  • भूमि अधिग्रहण अध्यादेश विरोधी आंदोलन : बेहतर नेतृत्व और संवाद की जरूरत

    samvad-ki-jaruratमोदी सरकार द्वारा लागू किए गए भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध के संदर्भ में बीते दो अप्रैल को दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में जनसंगठनों और विभिन्न राजनीतिक दलों की एक बैठक हुई, जिसमें निर्णय लिया गया कि देश में हर स्तर पर सभी संगठन मिलकर विरोध प्रदर्शन करेंगे. बैठक ़खत्म होने के अगले ही दिन सरकार एक बार फिर भूमि अधिग्रहण अध्यादेश ले आई. बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया था कि यदि सरकार दोबारा अध्यादेश लेकर आती है, तो छह अप्रैल को देश भर में अध्यादेश की प्रतियां जलाकर सांकेतिक तौर पर विरोध किया जाएगा. दिल्ली के जंतर-मंतर पर पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार नए अध्यादेश की प्रतियां जलाई गईं, जिसमें तक़रीबन 40-50 लोगों ने हिस्सा लिया. कार्यक्रम में जनसंगठनों और वामदलों के कार्यकर्ता तो मौजूद थे, लेकिन उन अन्य राजनीतिक दलों के नुमाइंदे या कार्यकर्ता नज़र नहीं आए, जिन्होंने दो अप्रैल की बैठक में क़दम से कदम मिलाकर चलने का वादा किया था.

    [Read More…]

  • भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ : राजनीतिक-सामाजिक संगठन एक साथ

             02-Political-Parties-meetin दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में 2 अप्रैल, 2015 को देश के अधिकांश किसान और जन संगठन एकत्रित हुए और मोदी सरकार द्वारा लाए गए भूमि अधिग्रहण अध्यादेश का नये सिरे से विरोध करने के लिए नई नीति तैयार की. इस बैठक के दौरान कांग्रेस, वाम दल, जनता दल(युनाइटेड) और अन्य राजनीतिक दलों के नुुमांइदों ने भी शिरकत की. सभी ने संसद से सड़क तक अध्यादेश का एकजुट होकर लड़ाई लड़ने और जीतने तक संघर्ष करने का ऐलान किया. आगे की लड़ाई भूमि अधिकार संघर्ष आंदोलन नाम से एकीकृत तौर पर लड़ी जाएगी. इसके लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय कमेटियों का गठन भी किया गया है. चूंकि केंद्र सरकार 3 अप्रैल को दोबारा अध्यादेश ले आई है इसलिए 6 अप्रैल को पूरे देश में नए अध्यादेश की कॉपी जला कर सांकेतिक तौर पर विरोध प्रदर्शन किया गया. [Read More…]