• बेगम अख्तरः तुम्हें याद हो कि न याद हो…

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     फैजाबाद की सरजमीं से दो ऐसी शख्शियतें उभरकर सामने आईं, जिनकी चमक आज भी मंद नहीं पड़ी है. उनमें से एक हकीकत थी और दूसरी अफसाना. लोगों ने अफसाने को हक़ीकत समझ लिया और हक़ीक़त को अफसाना. मिर्ज़ा हादी रुसवा ने अपने उपन्यास में उमराव जान अदा एक ऐसा जीवंत चित्रण प्रस्तुत किया, कि इसके छपने के बाद ही उमराव जान से मुलाकात करने के लिए लखनऊ में लोगों की भीड़ लगने लगी. लेकिन उमराव हक़ीकत नहीं थीं. उमराव के ऊपर के ऊपर बहुत कुछ लिखा जाता रहा है और?आगे भी लिखा जाता रहेगा लेकिन हम यहां उस दूसरी सख्शियत की बात करेंगे जिनके जीवन से ऐसी-ऐसी बातें जुड़ी हैं जिन्हें सुनकर लोगों को लगने लगा कि वह अफसाना हैं ये शख्शियत थी गायिका बेगम?अख्तर की. [Read More…]