क्या भारतीय क्रिक्रेट टीम के सबसे सफल कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को कप्तानी से हटाने और विराट कोहली को टीम की कमान सौंपने का सही वक्त आ गया है? क्या कोहली के कंधे इतने मजबूत हो गए हैं कि वह सवा अरब लोगों की आशाओं का बोझ अपने कंधों पर ले कर चल सकें ? क्या कोहली खुद को एक सफल बल्लेबाज के साथ-साथ एक सफल कप्तान साबित कर पाएंगे? चूंकि सवाल भारत में धर्म का दर्जा रखने वाले क्रिक्रेट का है, इसलिए इन सवालों का जवाब बेहद जरूरी है.
विदेशी धरती पर मिल रही लगातार हार टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के लिए परेशानी की वजह बन गई है. उनका सिंहासन डोल रहा है. ऊपर से आईपीएल-6 का फिक्सिंग विवाद भी उनके गले की फांस बनता जा रहा है. उन्हें टेस्ट कप्तान के पद से हटाने के लिए चौतरफा दबाव भी बनाया जा रहा है. समर्थक उन्हें टेस्ट कप्तानी छोड़ एकदिवसीय और टी-20 मैचों में ध्यान केंद्रित करने की सलाह दे रहे हैं, जबकि आलोचक कैप्टन कूल (धोनी) की जगह करेजियस कोहली को तत्काल टीम इंडिया का कप्तान बनाने की पैरवी कर रहे हैं. क्या भारतीय क्रिक्रेट टीम के सबसे सफल कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को कप्तानी से हटाने और विराट कोहली को टीम की कमान सौंपने का सही वक्त आ गया है? क्या कोहली के कंधे इतने मजबूत हो गए हैं कि वह सवा अरब लोगों की आशाओं का बोझ अपने कंधों पर लाद सकें ? क्या कोहली खुद को एक सफल बल्लेबाज के साथ-साथ एक सफल कप्तान साबित कर पाएंगे? चंकि सवाल भारत में धर्म का दर्जा रखने वाले क्रिक्रेट का है, इसलिए इन सवालों का जवाब बेहद जरूरी है. टीम इंडिया के कप्तान को लेकर अटकलों का बाजार गर्म था. इन अटकलों के बीच धोनी के घायल होने और एशिया कप के लिए टीम की कमान कोहली को सौंपे जाने को महज एक संयोग ही कहा जाएगा. यदि एशिया कप जैसी महत्वपूर्ण प्रतियोगिता में भारत को जीत की पटरी पर वापस लाने में कार्यकारी कप्तान विराट कोहली सफल होते हैं तो यह उनके लिए भारत का कप्तान बनने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा. श्रीलंका और चिर प्रतिद्वन्द्वी पाकिस्तान जैसी टीमों के सामने वह किस तरह की कप्तानी करते हैं. कोहली धोनी की अनुपस्थिति में मैदान में किस तरह के निर्णय लेते हैं, यह देखना बेहद रोचक होगा. एशिया कप के पहले मैच में मेजबान बांग्लादेश के खिलाफ कप्तानी शतक लगाकर कोहली ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि वह टीम इंडिया की बागडोर अपने हाथों में लेने के लिए पूरी तरह तैयार हैं और वह खुद को एक बेहतर कप्तान साबित करने के इस मौके को खाली नहीं जाने देंगे. सचिन, गंभीर, सहवाग जैसे खिलाड़ियों की मौजूदगी में जिस तरह कोहली ने धीरे-धीरे टीम में अपनी जगह बनाई, उसी तरह वह टीम के कप्तान बनने की दिशा में भी आगे बढ़ रहे हैं. युवा कोहली को टीम में जगह पाने के लिए किसी न किसी सीनियर खिलाड़ी के चोटिल होने का इंतजार करना पड़ता था. चोट और फॉर्म से जूझते सीनियर खिलाड़ियों के टीम से बाहर होते ही कोहली ने अंगद की तरह टीम में अपना पैर जमा लिया और धीरे-धीरे टीम की रीढ़ बन गए. जिस तरह टीम इंडिया नब्बे के दशक में पूरी तरह सचिन तेंदुलकर पर निर्भर हो गई थी, आज टीम इंडिया एक बार फिर से उसी मोड़ पर आकर खड़ी हो गई है. यहां फर्क सिर्फ इतना है कि सचिन की जगह विराट ने ले ली है. टीम की जीत हो या हार, दोनों ही स्थिति में मैदान में केवल विराट का बल्ला ही लगातार हल्ला बोलता दिखाई देता है. कप्तानी विराट के लिए कोई नया काम नहीं है. विराट ने भारतीय टीम को 2008 में मलेशिया में हुए अंडर-19 विश्व कप में अपनी बल्लेबाजी और बेहतरीन कप्तानी के बल पर खिताब दिलवाया था. इसके बाद आईपीएल के लिए हुई खिलाड़ियों की नीलामी में रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर ने उन्हें खरीदा था. रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के मालिक विजय माल्या ने विराट को टीम में शामिल करने पर कहा था कि कप्तान टीम का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी होता है, इसलिए उन्होंने कोहली को अपनी टीम में शामिल कर लिया. आईपीएल के पांचवें सीजन में विराट को अस्थाई तौर पर डेनियल विटोरी की जगह कप्तानी सौंपी गई और छठवें सीजन में वह स्थाई तौर पर टीम के कप्तान बन गए. कोहली बहुत ही समझदार और परिपक्व खिलाड़ी हैं. वह मैदान में भले ही बहुत आक्रामक दिखाई पड़ते हों, लेकिन उनके निर्णय बहुत ही सूझ-बूझ भरे होते हैं. विराट की कप्तानी से प्रभावित होकर आरसीबी के कोच रे जेनिंग्स ने उनकी तुलना ऑस्ट्रेलियाई कप्तानों से की थी और कहा था कि विराट आगे चलकर एक बेहतरीन कप्तान साबित होंगे. आम तौर पर भारतीय बहुत ही विनम्र और शांत होते हैं. विराट एक आम भारतीय नौजवान नहीं हैं, वह ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों की तरह एग्रेसिव (आक्रामक) हैं और आगे बढ़कर चुनौतियों का सामना करते हैं. सबसे अच्छी बात यह है कि उन्हें जिम्मेदारी लेना पसंद है. वह लक्ष्य निर्धारित कर उसे पूरा करने की जी-तोड़ कोशिश करते हैं. वह इसके लिए अपने साथी खिलाड़ियों को भी प्रोत्साहित करते हैं. वह कप्तान बनने की राह में भले ही धीमी गति से चल रहे हों, लेकिन उनकी दिशा और दशा सौ फीसद सही है. उन्हें खुद को एक बेहतर कप्तान साबित करने के लिए जो भी मौके मिले हैं, उन्होंने उसे किसी भी सूरत में खाली नहीं जाने दिया. पिछले साल जिम्बाब्वे दौरे के लिए सुरेश रैना के टीम में रहते हुए विराट कोहली को टीम की कमान सौंपी गई, जबकि पिछले जिम्बाब्वे दौरे के लिए रैना को कप्तान बनाया गया था और रैना ने बतौर कप्तान जीत दिलाने में भी सफल रहे थे. बावजूद इसके उनकी जगह कोहली को कप्तान बनाया गया. कोहली ने हाथ आए इस मौके को भी खाली नहीं जाने दिया. जिम्बाब्वे को उनकी जमीन पर 5-0 के अंतर से मात देने वाले कोहली पहले भारतीय कप्तान भी बने. कोहली ने खुद को बल्लेबाजी और कप्तानी दोनों मामलों में अन्य खिलाड़ियों के मुकाबले बीस साबित किया. हाल ही में पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कप्तान इयान चैपल ने ईएसपीएन क्रिकेट इनफो वेबसाइट में प्रकाशित हुए अपने एक लेख में कहा कि धोनी को टेस्ट कप्तानी से हटा देना चाहिए. धोनी को वर्ष 2011-12 में इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया दौरे में मिली शर्मनाक हार के बाद ही टेस्ट कप्तानी से हटा दिया जाना चाहिए था. उनकी टीम विदेशी धरती पर लगातार आठ टेस्ट मैंचों में हार चुकी थी और कैप्टन कूल (धोनी) एक आम कप्तान साबित हो रहे थे. उस खराब दौर में बतौर कप्तान वह टीम में उत्साह नहीं भर पा रहे थे. वह एक ऐसे असहाय कप्तान नजर आ रहे थे जो कि बहाव के साथ बहा चला जा रहा था. इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि टीम हार रही हो, तब एक बेहतर से बेहतर कप्तान भी बहुत लंबे समय तक अपने पद पर नहीं बना रह सकता है. धोनी को टेस्ट कप्तानी से हटाने और कोहली को कप्तान बनाने का वक्त आ गया है. वर्तमान में भारतीय टीम में धोनी का विकल्प एकमात्र विराट कोहली ही हैं. कोहली के पास जूनियर लेवल पर कप्तानी करने का अनुभव है और सबसे अच्छी बात यह है कि उनकी उम्र भी कप्तान बनने के लिए सही है और वह एक बेहतरीन बल्लेबाज के रूप में उभरे हैं. साथ ही वह विदेशी पिचों पर भी रन बना रहे हैं. टीम इंडिया के विदेशी पिचों पर और बेहतर प्रदर्शन करने की आशा है. इसके लिए एक ऐसे कप्तान की भी जरूरत है, जो विदेशी पिचों पर बेहतरीन बल्लेबाजी कर सके. साथ ही गेंदबाजों को बेहतरीन प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित भी कर सके. आज कोहली अपने क्रिकेट करियर के चरम पर हैं. वह हर दूसरे दिन क्रिकेट के मैदान पर एक नया धमाका कर देते हैं. नब्बे के दशक में सचिन तेंदुलकर भी कुछ ऐसा ही करते थे. सचिन तेंदुलकर अकेले करोड़ों भारतीयों की आशाओं का बोझ अपने कंधे पर लेकर चल रहे थे. उस वक्त मोहम्मद अजहरुद्दीन भारतीय टीम के कप्ताने थे. सचिन तेंदुलकर को भारतीय टीम का उपकप्तान बना दिया गया. लोग उन्हें भविष्य के कप्तान के रूप में देख रहे थे. सचिन अपने बल्ले से लगातार आग उगल रहे थे. भारतीय टीम की असफलता और सचिन की सफलता एक साथ आगे बढ़ रही थी. अजहरुद्दीन भारत को सबसे ज्यादा जीत दिलाने वाले कप्तान भी थे. जिस तरह धोनी भारत की सफलता का नया अध्याय लिख रहे हैं, कोहली उनके सबसे महत्वपूर्ण हथियार और उपकप्तान के रूप में उनकी मदद कर रहे हैं. वर्ष 1996 में सचिन तेंदुलकर को भारतीय टीम का कप्तान बनाया गया था. सचिन कप्तानी का भार नहीं संभाल सके. उनकी कप्तानी के दौरान टीम इंडिया को आए दिन हार का मुंह देखना पड़ता था. भारतीय टीम घर की शेर बनी रही. वह विदेशी जमीं पर एक अदद जीत के लिए तरस रही थी. जीत नहीं हुई. आखिरकार सचिन ने कप्तानी छोड़ दी. कोई विकल्प नहीं होने की वजह से अजहरुद्दीन को फिर से टीम का कप्तान बना दिया गया. कहीं कप्तानी के बोझ तले कोहली भी सचिन सिंड्रोम से ग्रसित न हो जाएं. हमारे हाथ से एक बेहतर कप्तान की तलाश में एक बेहतरीन खिलाड़ी भी न चला जाए. वह भी तब, जब वह अपने खेल के चरम पर है और शतक दर शतक बनाकर टीम को सशक्त करने में प्रमुख भूमिका अदा कर रहा है. कोहली पर सचिन की तरह कप्तानी का दबाव नज़र नहीं आता है, बल्कि उनका खेल दबाव में और ज्यादा निखर जाता है. एकदिवसीय मैंचों में लक्ष्य का पीछा करते हुए उनके द्वारा बनाए गए 13 मैच जिताऊ शतक इस बात की पुष्टि करते हैं.
कोहली की बेहतरीन कप्तानी पर प्रतिक्रिया देते हुए पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर ने कहा कि विराट एक अलग तरह का लीडर है. वह सामने से नेतृत्व करने वालों में से है. वह एक ऐसा खिलाड़ी है, जो बल्ले के साथ-साथ अपनी बेहतरीन फील्डिंग से भी टीम के लिए योगदान करता है. उसमें वह सब कुछ है, जो एक बेहतर कप्तान में होना चाहिए. कोहली ने अब तक जिस तरह की कप्तानी की है, उसमें वह बहुत ही सहज दिखाई दिए. उन्होंने बहुत परिपक्वता दिखाई है. एक कप्तान के रूप में वह और अधिक जिम्मेदारी से बल्लेबाजी करते हैं. एशिया कप के लिए कप्तान बनाए जाने के बाद विराट कोहली ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि मैं कप्तान बनने की जिम्मेदारियां और चुनौतियां समझता हूं. मैं इस टूर्नामेंट में मिली कप्तानी की जिम्मेदारी को लेकर बहुत उत्साहित हूं. इसके बाद यह भी पता चल जाएगा कि मैं कितने पानी में हूं. उनका यह वकतव्य बहुत ही आत्मविश्वास भरा है और यह दर्शाता है कि वह कप्तान के रूप में टीम इंडिया की जिम्मेदारी संभालने के लिए मानसिक रूप से भी तैयार हैं. बतौर कप्तान उनका किया गया प्रदर्शन भी उन्हें कप्तान बनाए जाने की ओर ही संकेत करता है. एशिया कप से पहले तक कोहली ने बतौर कप्तान 8 मैचों में 66.4 के औसत से रन बनाए थे, जो उनके एकदिवसीय करियर बल्लेबाजी औसत 51.85 से कहीं ज्यादा है. अब तक विराट कप्तान की भूमिका में दो शतक भी बना चुके हैं. महेंद्र सिंह धोनी ने अपनी कप्तानी के बल पर भारत को दुनिया की नंबर एक टीम बनाने में अहम योगदान दिया. उनकी कप्तानी में भारत टी-20 और एक दिवसीय मुकाबलों में विश्व चैंपियन बना. साथ ही चैंपियंस ट्रॉफी जीतने में भी सफल हुआ. शुरुआती दौर में विदेशों में भारत का टेस्ट रिकॉर्ड थोड़ा बहुत सुधारने में सफल हुए. पिछले 2 सालों से विदेशी सरजमीं पर उनका रिकॉर्ड बद से बदतर रहा है. कोई भी कप्तान ऐसे आकड़ों को याद नहीं करना चाहता है. 2015 के एकदिवसीय विश्व कप के आयोजन में साल भर का समय भी नहीं बचा है. ऐसे में एकदिवसीय कप्तान के रूप में धोनी को हटाना सही निर्णय नहीं होगा. टेस्ट कप्तानी विराट कोहली को दे देनी चाहिए, जिससे कि बतौर कप्तान उन्हें परिपक्व होने में मदद मिल सके. एकदिवसीय मैचों में पिछले साल दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड दौरे को छोड़कर भारतीय टीम को जीत हासिल हुई. सीमित ओवरों के प्रारूप में धोनी अभी भी दुनिया के सबसे बेहतरीन कप्तान हैं. ऐसे में उन्हें टीम से निकालना और एकदिवसीय कप्तानी से हटाना चयनकर्ताओं और बीसीसीआई के लिए आत्मघाती कदम होगा. धोनी पहले भी कई बार यह कह चुके हैं कि 2015 विश्व कप के बाद वह अपने करियर को लंबा करने के लिए क्रिकेट के छोटे प्रारूपों पर ध्यान देंगें. टीम के संतुलन को बनाए रखने के लिए अब टीम से ज्यादा छेड़छाड़ करना संभव नहीं होगा. ऐसे भी चयन समिति उन्हें विश्व खिताब बचाने का मौका जरूर देगी. यदि फिक्सिंग मामले में धोनी का नाम नहीं उछलता है, तो फिलहाल धोनी टीम इंडिया के कप्तान बने रहेंगे और कोहली को अपनी बारी का इंतजार करते रहना होगा. निश्चित तौर पर कोहली टीम इंडिया का युवराज बन चुके हैं. एकदिवसीय विश्वकप के बाद उनकी ताजपोशी होना निश्चित है. आगे चलकर वह एक बेहतरीन कप्तान साबित होंगे.
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